एकात्म मानवदर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित इस ‘दीनदयाल स्मृति व्याख्यान’ श्रृंखला में आज आप सभी से जुड़ने का अवसर मिला है। इसके लिए मैं प्रतिष्ठान के अध्यक्ष डॉ. महेश शर्मा को धन्यवाद देता हूं क्योंकि यह उनका ही आग्रह था जिसके कारण आप सभी से जुड़ने का मुझे यह संयोग बना है।
भारत में बहुत कम लोग हैं जिन्होंने पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जीवन और दर्शन के अध्ययन और शोध में अपना सारा जीवन लगाया है। डॉ. महेश शर्मा जी उन बिरले लोगों में से है जिन्होंने दीनदयालजी पर प्रामाणिक काम किया है।
जैसा कि आप सभी को जानकारी है, कि कल पूरे देश में पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की जयंती बड़े धूमधाम से सारे देश में मनार्इ गयी। सभी ने जहां दीनदयालजी के राजनीतिक और सामाजिक पहलुओं को याद किया, वहीं उनके एकात्म मानववाद के दर्शन और अन्त्योदय के विचार पर भी लोगों ने मंथन भी किया।
वैसे तो अपने शुरूआती दिनों में मैंने भी दीनदयालजी के विचार दर्शन पर थोड़ा बहुत अध्ययन किया था, मगर जब महेशजी ने मुझे इस ‘दीनदयाल व्याख्यानमाला’ के अन्तर्गत ‘आत्मनिर्भर भारत का संकल्प’ विषय पर बोलने का कड़ा और बड़ा काम दिया, तो मुझे फिर से अपनी पुरानी किताबों को पलटना पड़ा।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय भारत की एक ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने एक ऐसी विचारधारा ऐसी दार्शनिक अवधारणा देने का काम किया, कि यदि कोर्इ दल उस विचारधारा या दार्शनिक अवधारणा के आधार पर काम करें तो मैं समझता हूं कि देश के समक्ष जो चुनौतियां हैं, इन चुनौतियों पर विजय प्राप्त की जा सकती है।
पंडित दीनदयाल जी ने एकात्म मानव दर्शन की एक ऐसी दार्शनिक अवधारणा भारत की राजनीति को देने का काम किया है, जो कि अन्य अवधारणाओं से सर्वथा भिन्न है, और भारत की संस्कृति, भारत की परंपरा एवं भारत की प्रकृति के सर्वथा अनुरूप है।
प्रिय बंधुओं, पंडित दीनदयाल जी का स्पष्ट रूप से यह कहना था कि व्यक्ति के संबंध में, समाज के संबंध में, परिवार के संबंध में, सृष्टि के संबंध में कभी भी एकांगी विचार नहीं होना चाहिए, बल्कि विचार यदि होना चाहिए तो समग्र रूप से विचार किया जाना चाहिए।
मनुष्य के बारे में दीनदयाल जी का कहना था कि मनुष्य तन, मन, बुद्धि और आत्मा इन चार चीजों से मिलकर बना हुआ है।
कोर्इ भी राजनीतिक पार्टी जो समाज का, व्यक्ति का, परिवार का, राष्ट्र का समग्र विकास करना चाहती है, तो इन चारों की एक साथ चिंता करनी चाहिए, ताकि तन की आवश्यकताएं भी पूरी हो सके, मन की आवश्यकताएं भी पूरी हो सके, बुद्धि की आवश्यकताएं भी पूरी हो सकें, और आत्मा की भी जो आवश्यकता है वह भी पूरी हो सकें।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का स्पष्ट रूप से कहना था, कि यदि मनुष्य के व्यक्तित्व का समग्र विकास करना हैं तो मनुष्य के केवल आर्थिक विकास के समबन्ध में ही चिंतन नहीं होना चाहिए बल्कि मनुष्य के आध्यात्मिक विकास के सम्बन्ध में भी चिंतन होना चाहिए।
आर्थिक विकास के साथ-साथ मनुष्य का आध्यात्मिक विकास यदि होता है तभी उसके व्यक्तित्व का समग्र विकास स्वाभाविक रूप से होगा।
हम सबको शायद यह ज्ञात हो की एकात्म मानववाद का यह महान दर्शन पंडित दीनदयाल उपाध्यायजी द्वारा, 22 से 25 अप्रैल, 1965 को मुम्बर्इ में दिये गये चार व्याख्यानों के रूप में प्रस्तुत किया गया था।
यह एक ऐसे दार्शनिक और राजनैतिक चिन्तक की सोच का परिणाम था, जिन्होंने यह मानते हुए की जीवन में विविधता है, हमेशा इस विविधता में, एक एकता को खोजने का प्रयास किया।
मित्रों, अमूमन यह माना जाता हैं, की ऐसी दार्शनिक बातो को धरातल पर लाना न तो अधिकांश नेताओं के लिए अधिक महत्व रखता है और न ही संभव होता हैं।
जिसने भी दीनदयाल जी को थोड़ा भी समझा होगा वह यह जानता होगा की एकात्म मानववाद एक ऐसी अवधारणा है जिसके केंद्र में व्यक्ति, व्यक्ति से जुड़ा हुआ एक घेरा परिवार, परिवार से जुड़ा हुआ एक घेरा – समाज, फिर राष्ट्र, विश्व और फिर अनंत ब्रम्हांड हैं।
यह एक ऐसी कड़ियों की लम्बी चेन हैं जहां पहले से दूसरे फिर दूसरे से तीसरे का विकास होता जाता है।
सभी एक-दूसरे से जुड़कर अपना अस्तित्व साधते हुए एक दूसरे के पूरक एवं स्वाभाविक सहयोगी बनते है, इनमे कोर्इ संघर्ष नहीं है।
जब हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी ने सबका साथ सबका विकास का नारा दिया तो, उसका आधार भी हमारे मार्गदर्शक दीनदयालजी का एकात्म मानववाद ही था।
जब मैं दीनदयालजी के विचार दर्शन से जुड़ी पुस्तक को पलट रहा था तब मेरी दृष्टि उन छह लक्ष्यों पर पड़ी जो उन्होंने भारत और भारतवासियों के सम्मुख प्रस्तुत किए थे।
मैं मानता हूं कि दीनदयालजी ने जो राष्ट्रीय लक्ष्य स्वतंत्रता प्राप्ति के पहले दो दशक के दौरान रखे थे उनकी प्रासंगिकता आज भी किसी दृष्टि से कम नही हुर्इ है।
वे छह लक्ष्य जो दीनदयालजी ने दिए थे वे सशक्त और स्वाभिमानी भारत के निर्माण के साथ-साथ आत्मनिर्भर भारत के संकल्प की पूर्ति के लिए भी जरूरी है।
दीनदयालजी का कहना था कि हमारे देश को लम्बे प्रयासों के बाद स्वतंत्रता मिली है। इसलिए इस राजनीतिक स्वतंत्रता को जो सुरक्षित रखें, ऐसी व्यवस्था हमें करनी चाहिए, यही हमारा प्रथम लक्ष्य है।
यानि भारत की आत्मनिर्भरता तभी कायम होगी जब भारत राजनीतिक स्वतंत्रता को सुरक्षित रखेगा। मुझे यह कहते हुए संतोष होता है कि 1975 से 1977 तक का कालखंड यदि छोड़ दिया जाए तो भारत की राजनीतिक स्वतंत्रता के सात दशकों के दौरान कभी आंच नही पहुंची है।
इन सात दशकों में भारतीय राजनीति में कितना उलटफेर हुआ है इसकी चर्चा यदि मैं करने लग जाऊंगा, तो सुबह का सूरज निकल आयेगा मगर चर्चा समाप्त नहीं होगी।
इसलिए मैं यहां केवल इतना ही कहना चाहूंगा कि जब दीनदयालजी ने राजनीतिक स्वतंत्रता का विचार रखा था तो उस समय शायद इसका अंदेशा रहा होगा कि क्या पता आने वाले दिनों में यह स्वतंत्रता संकट में पड़ जाए।
उस समय देश के राजनीतिक क्षितिज पर कांग्रेस सूरज की तरह चमक रही थी और विपक्ष बहुत ही कमजोर स्थिति में था। दीनदयालजी ने उस समय शायद कल्पना भी नहीं कि होगी कि एक दिन ऐसा आयेगा जब राजनीतिक धरातल बदल जाएगा, और प्रखर राष्ट्रवादी विचारधारा से ओत-प्रोत लोग, बहुमत के साथ केन्द्रीय सत्ता प्राप्त करेंगे तथा उन्हें दुबारा भी सत्ता में आने का अवसर मिलेगा।
आप सभी जानते ही है कि जिस जनसंघ के वे राष्ट्रीय महासचिव थे, उसी दीपक की रोशनी में बढ़कर भाजपा कांग्रेस को पीछे छोड़कर, राष्ट्रीय राजनीतिक क्षितिज पर नया सूर्योदय लेकर आर्इ है।
मैं यहां राजनीतिक चर्चा नहीं करना चाहता क्योंकि जब भारत की राजनीतिक स्वतंत्रता की बात होती है तो इसे सुरक्षित रखने में सभी की भूमिका रही है।
आपातकाल इसका अपवाद था, क्योंकि कांग्रेस में उस समय व्यक्ति न केवल संगठन से बड़ा हो गया, बल्कि यहां तक कह दिया गया India is Indira and
Indira is India. मगर हम उस दौर से बाहर निकलने में कामयाब रहें।
भारत जैसा देश जिसके आस पड़ोस में लोगों का अपनी राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने में अक्सर बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है, वहां हमारे देश की यह सफलता हमारी बहुत बड़ी उपलब्धि है, जिस पर हमें गर्व होना चाहिए।
मित्रों, जो दूसरी बात दीनदयालजी ने कही थी कि, हमारी जनतंत्रीय प्रणाली जिससे संकट में पड़ जाए, या जो उसके लिए बाध्यकारी सिद्ध हो, ऐसी Economic Planning यानि आर्थिक नियोजन इस देश में न हो।
यह एक ऐसा विषय है, जो आत्मनिर्भर भारत के संकल्प से बहुत करीबी रिश्ता रखता है। जिस समय दीनदयालजी ने यह विचार रखा था, उस समय देश में Nehruvian Socialism हावी था।
उस समय एक ऐसे Economic Model को अपनाया गया था, जो भारत जैसे देश की आवश्यकताओं और यहां की आर्थिक धरातल के अनुरूप नही था। दीनदयालजी का मानना था कि उनका आर्थिक मॉडल देश में मानव की जगह मशीन को प्रमुखता देता है।
उनका मानना था कि तन, मन, बुद्धि और आत्मा को संतुष्टि देने वाला मॉडल अगर भारत में नही होगा तो देश में लोकतंत्र की व्यवस्था भी खतरे में पड़ सकती है।
दीनदयालजी का जो आर्थिक मॉडल था, उसके केन्द्र में मानव कल्याण और विशेष रूप से समाज के अन्तिम पायदान पर खड़े व्यक्ति का कल्याण था। आजाद भारत में इस दिशा मे र्इमानदारी से प्रयास लम्बे समय तक किए ही नही गए।
इसकी शुरूआत हुर्इ तो अटलजी के प्रधानमंत्री बनने के बाद हुर्इ। उनके आने से पहले देश में एक अजीब स्थिति थी, जहां देश के अनाज भंडार भरे पड़े थे, फिर भी बड़ी संख्या में गरीबों को दो जून की रोटी नहीं मिल पा रही थी।
इसलिए अटलजी ने अन्न भण्डारों का मुंह खोला और देशभर के गरीबों को अन्त्योदय योजना के अन्तर्गत सस्ती दरों पर अनाज उपलब्ध कराया।
यदि अटलजी के पहले के नीति नियंताओं ने भारत की आवश्यकता के अनुरूप Economic Planning की होती तो बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इस देश की जनता को अब तक प्रतीक्षा नही करनी पड़ती।
आज देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आजादी के सात दशक बाद उन कामों को पूरा कर रहे हैं, जो आजादी के पहले तीन दशक में ही हो जाने चाहिए थे।
एक सामान्य से सामान्य भारतीय, को भी सम्मान की जिंदगी जीने का मौका मिले, इसके लिए ही प्रधानमंत्री मोदीजी ने अनेक योजनाएं शुरू की है, जिनके कारण देश के गरीबों का बैंक में खाता हो, उनके घरों में रसोर्इ गैस की सुविधा पहुंची हो, गांवों में बिजली की सुविधा, सड़क की सुविधा और अब इंटरनेट की सुविधा दी जा रही है।
दो साल पहले गरीबों की स्वास्थ्य रक्षा के लिए ‘आयुष्मान भारत योजना’ के तहत देश के दस करोड़ गरीब परिवारों को पांच लाख रूपये सालाना की मुफ्त इलाज की सुविधा दी गर्इ है।
अब हमारे प्रधानमंत्री ने संकल्प लिया है कि 2022 तक यानि जब देश आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा होगा तो देश के हर गरीब के सिर पर एक छत होगी। इस Economic Planning के लिए देश को इतना लम्बा इंतजार करना पड़ा। जबकि दीनदयालजी 1960 के दशक में यही बात कह रहे थे।
जब भी हम दीन दयालजी की बात करते है तो लोग सबसे पहले जिस कहावत को याद करते है वह है ‘हर खेत को पानी, हर हाथ को काम’। यह एक ऐसा काम है जो लम्बे समय तक इस देश के आर्थिक नियोजन का कभी हिस्सा ही नही रहा।
यदि आजादी के बाद से ही, भारत की कृषि और किसानों के हित में सही आर्थिक नियोजन किया गया होता, तो इस देश का किसान आत्महत्या करने के लिए कभी मजबूत नहीं हुआ होता।
जिस देश की आधी आबादी किसान हो, वहां कृषि की ऐसी उपेक्षा लम्बे समय तक हुर्इ कि खेती करना अलाभकारी धंधा हो गया। निहित स्वार्थों के चलते इस देश की कृषि और किसानों को कभी वह जमीन दी ही नहीं गर्इ, जहां इस देश का किसान भी अपनी मेहनत का पूरा फल प्राप्त कर सके।
अब जाकर प्रधानमंत्री मोदीजी ने कुछ ऐसे कदम उठाए है जो इस देश के किसानों को उसकी उपज का बेहतर दाम हासिल करने में सहायक होंगे।
संसद के पिछले सत्र/मानसून सत्र दो कृषि विधेयक पारित हुए है, जिनके माध्यम से किसानों को अपनी उपज बेचने की सही मायनों में आजादी मिली है।
अब इस देश का किसान मंडी में अपनी मेहनत गिरवी रखने के लिए मजबूर नहीं है। इन दोनेां Farm Bills के पारित हो जाने के बाद देश का हर किसान पूरे देश में कही भी, जहां उसे बेहतर कीमत मिले, अपनी फसल बेचने के लिए आजाद होगा।
इस ऐतिहासिक कृषि सुधार से उन लोगों के पैरों तले जमीन खिसक गर्इ है जो लोग किसानों के नाम पर अपने निहित स्वार्थ साधते थे। उनका धंधा खत्म हो जायेगा इसलिए जानबूझ कर देश के कुछ हिस्सों में एक गलतफहमी पैदा की जा रही है, कि हमारी सरकार MSP की व्यवस्था खत्म करना चाहती है।
जबकि सच्चार्इ इसके ठीक उलट है। वह प्रधानमंत्री मोदीजी ही है जिन्होंने स्वामीनाथन आयोग द्वारा प्रस्तावित MSP फार्मूले को स्वीकार किया है। उसी फार्मूले के तहत देश में अब MSP की घोषणा की जा रही है।
इसी सप्ताह रबी की छह फसलेां की MSP की घोषणा की गर्इ है, जिसमें लगभग डेढ़ गुने से दोगुने तक की MSP में वृद्धि की गर्इ है। MSP खत्म करने का इरादा न इस सरकार का कभी था, न है, और न आगे कभी होगा।
यहां तक कि मंडी व्यवस्था भी कायम रहने वाली है। दुष्प्रचार करके किसानों को भड़काने की यह कोशिश कतर्इ कामयाब नहीं होगी।
भारत के किसानों के हित और कल्याण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता तो दीनदयाल उपाध्याय जी के जमाने से है। इस पथ से हमें कोर्इ डिगा नहीं सकता।
आजादी के बाद पहली बार अटलजी ने, देश के गांव, गरीब और किसान को अपनी नीतियों का केन्द्र बनाया था। आज मोदीजी उसी रास्ते पर और बड़े पैमाने पर काम कर रहे है।
मैं मानता हूं कि दीनदयालजी ने अपने आर्थिक नियोजन में जिस सावधानी की बात की थी हमारी सरकार ने उसका पूरा ध्यान रखा है। सही दिशा में आर्थिक नियोजन से ही आत्मनिर्भर भारत का संकल्प पूरा होगा।
दीनदयालजी का तीसरा विचार था, कि हमारे सांस्कृतिक मूल्य जो अपने राष्ट्र जीवन के लिए ही नहीं, सारे संसार भर के लिए भी अत्यंत उपयोगी है, हमें उनकी रक्षा करना चाहिए।
इस दिशा में यदि हम देखें, तो पायेंगे कि जिस तरह के उदात्त सांस्कृतिक मूल्य, हमारे देश में सदियों से रहे है, वह किसी ओर देश में नही मिलते है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का संदेश भी सारे विश्व को अगर कहीं से गया है, तो हमारे भारत से गया है।
आज पूरी दुनिया एक Global Village की तरह हो गर्इ है। हर देश अपने Action से पूरी दुनिया पर असर डालता है। विश्व शांति और सौहार्द के प्रति हमारा एक सांस्कृतिक प्रतिबद्धता
रही है, जिस पर हम हमेशा कायम रहे हैं।
इसी तरह भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, और पारंपरिक ज्ञान, को भी हमें संजोकर रखना चाहिए। योग और आयुर्वेद जो भारत की पूरी दुनिया को देन है, उसका महत्व अब सबको समझ में आ रहा है।
योग की प्रतिष्ठा सारे संसार में स्थापित हुर्इ है। आज दुनिया के 190 देशों में हर साल ‘अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस’ भी मनाया जाने लगा है।
आजकल जब पूरा विश्व कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के संकट से जूझ रहा है, तो एक बार फिर लोगों का ध्यान भारत के पारम्परिक ज्ञान की तरफ जा रहा है।
कोरोना की आपदा ने, हमें हमारे शरीर में Immunity के महत्व को बताया है। Immunity यानि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता। कोरोना जैसी बीमारी जिसका कोर्इ इलाज नही है, उससे लड़ने में यदि कोर्इ जीत सकता है, तो आपके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता ही है।
साथियों, योग और आयुर्वेद भारत के दो ऐसे पारम्परिक और सांस्कृतिक जीवन मूल्य, और संस्कार हैं, जिनसे भारत ही नहीं सारी दुनिया का कल्याण निहित है। भारत की इस सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने, और साझा करने से विश्व का भी कल्याण होगा। यह दीनदयालजी का भी मानना था।
जो चौथा राष्ट्रीय लक्ष्य दीन दयालजी ने दिया था वह था कि हमें सैनिक दृष्टि से आत्मरक्षा में समर्थ होना चाहिए। बहुत कम लोग यह जानते है कि दीनदयालजी का चिंतन केवल अर्थ नीति पर ही नही था बल्कि सामरिक चिंतन भी उनके लिए बेहद महत्वपूर्ण था।
दीनदयालजी का मानना था कि सामरिक नीति के बिना अर्थ नीति विकलांग हो जाएगी। सुरक्षा या सामरिक नीतियों की उपेक्षा करके, कोर्इ भी देश आत्मनिर्भर नहीं बन सकता। सामरिक नीति और आर्थिक नीति का सामंजस्य ही, आत्मनिर्भर भारत के संकल्प की पूर्ति कर सकता है।
सैनिक दृष्टि से आत्मरक्षा में समर्थ भारत का लक्ष्य दीनदयालजी ने उस समय देश के सामने रखा था, जब 1962 में चीन के हाथों हुर्इ शर्मनाक पराजय का दंश देश झेल रहा था।
पचास और साठ के दशक में चीन ने हजारों वर्ग किलोमीटर जमीन कब्जा कर ली, और उस समय के शासकों ने विस्तारवादी चीन का विरोध करने के बजाए, उसके साथ मान मनुहार का लम्बा दौर चलाया। उसका खामियाजा 1962 में देश को भुगतना पड़ा।
साथियों, इसी तरह जब 1964 में चीन ने पहला Nuclear Test किया तो, उस समय ही दीनदयालजी इस बात के पक्षधर थे कि भारत को Nuclear Test करना चाहिए।
भारत में एक Credible Nuclear
Deterrent की बात अगर किसी ने की तो पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने। अटलजी ने 1998 में राजस्थान की वीरभूमि पर पांच परमाणु धमाके किए तो, उनके सामने लक्ष्य किसी देश पर Atom Bomb डालना नही था, बल्कि एक Deterrent रखना था। उस Deterrent के कारण ही, भारत की सेना में आज आत्मरक्षा का पूरा आत्मविश्वास है।
आज 2020 में जब भारत की सेना चीन के सैनिकों के साथ जब Engagement करती हैं तो बराबर की हैसियत से करती है। यदि भारत की तरफ कोर्इ भी ताकत टेढ़ी निगाह रखेगी, तो उसका माकूल जवाब देने की ताकत भारतीय सैनिकों में है।
दीनदयालजी के अनुसार पांचवा लक्ष्य है, आर्थिक स्वावलम्बन का जिसके भीतर से ‘आत्मनिर्भर भारत’ की प्रतिध्वनि निकलती है।
दीनदयालजी का विचार था कि जो राष्ट्र आर्थिक दृष्टि से दूसरों पर निर्भर रहता है, उसका स्वाभिमान नष्ट हो जाता है। उनका मानना था स्वाभिमान शून्य राष्ट्र अपनी स्वतंत्रता की रक्षा नही कर सकता।
इस साल 2020 में भारत को आजाद हुए 73 साल पूरे हो चुके है। प्रधानमंत्री जी ने इस बार स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से कहा, कि जिस देश में 18-20 साल की आयु होते ही आम परिवारों में नवयुवकों के आत्मनिर्भर बनने की अपेक्षा रखी जाती है, वहीं भारत की आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने के लिए बड़ा लम्बा इंतजार किया गया है।
इस इंतजार को खत्म करने की घड़ी अब आ चुकी है। हमारे प्रधानमंत्री ने 2014 में ही यह स्पष्ट कर दिया था कि वे भारत में Manufacturing को बढ़ावा देने का संकल्प कर चुके हैं।
‘मेकइनइंडिया’कार्यक्रम के अन्तर्गत देश में Manufacturing को बढ़ावा देने वाले कर्इ निर्णय लिए गए। इसके बावजूद Manufacturing Sector की भारत की GDP में हिस्सेदारी 15 फीसदी से ऊपर नहीं बढ़ सकी।
इसलिए अब बदली हुर्इ परिस्थितियों में जब प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में ‘आत्मनिर्भरभारत’का संकल्प लिया गया है तो उन सभी बातों को भी Address करने का काम किया जा रहा है, जो Manufacturing Sector को बढ़ावा देने में Road Blocks का काम करते है।
कर्इ बार लोग पूछते हैं कि ‘आत्मनिर्भरभारत’के अन्तर्गत आप ऐसा क्या करेंगे जो ‘मेकइनइंडिया’में नही हो रहा था। रक्षा मंत्री के नाते मैं रक्षा क्षेत्र में लिए गए सिर्फ दो निर्णयों की चर्चा यहां पर करना चाहूंगा जिसके चलते लोगों को Defence Sector में नर्इ Opportunities नजर आने लगी है।
पिछले दिनों मैंने 101 Defence Equipments की एक Negative List जारी की जिसके माध्यम से यह Policy Decision हो गया, कि यह सारे Equipments और Platforms भारत में अब आयात नहीं होंगे, बल्कि इनका निर्माण यहां मौजूद कम्पनियां ही करेंगी। सिर्फ एक निर्णय से एक साल में 52000 करोड़ रूपये की Manufacturing
Opportunities पैदा हो गर्इ।
जो चीजें भारत में बनती है या आसानी से बन सकती है उन्हें विदेशों से Import करने का क्या औचित्य है? मैं मानता हूं कि जब हम Local के लिए Vocal होंगे, तो हमें भारत में आसानी से बनने वाली चीजें तो मिलेगी ही, साथ ही इस प्रोत्साहन से वे चीजें भी भारत में बनने लगेंगी जो आज नहीं बन पाती हैं।
भारत का पूरा Missile Programme इस बात का गवाह है, कि यदि भारत के वैज्ञानिक और विशेषज्ञ ठान लें, तो Complex Technologies के मामले में भी, हम आत्मनिर्भर हो सकते है।
आज भारत के पास हर तरह की Missile Capability है। यहां तक कि अन्तरिक्ष में भी हम Missile के सहारे दुश्मनों के Assets को खत्म कर सकते है। ‘मिशनशक्ति’ की सफलता ने यह पूरी दुनिया के सामने साबित कर दिया है।
इस देश में भी आधुनिक रक्षा सामग्रियां बन सकती है। यह भरोसा मुझे तो है ही, साथ ही हमारी सरकार को भी है। मेरा मानना है कि अलगे दस वर्षों में जल, थल, नभ और अन्तरिक्ष में कारगर Defence Platforms बनाने की क्षमता इस देश में है। बस हमें लक्ष्य बनाकर जुटने की जरूरत है।
इस काम में जिस तरह के भी Policy Support की जरूरत होगी, हमारी सरकार उसे कर रही है। पिछले दिनों, जो दूसरा बड़ा Policy Announcement
Defence Sector में हुआ है, वह है रक्षा के क्षेत्र में 74 फीसदी तक FDI को मंजूरी।
इस निर्णय से हमारी सरकार ने विदेश की बड़ी बड़ी Defence Companies के लिए ‘Make In India’ की राह आसान कर दी है। जल्द ही हम नर्इ Defence Production
& Procurement Policy भी लाने जा रहे है।
हमारा लक्ष्य है कि 2024-25 तक भारत में सिर्फ Defence Sector में करीब 1.75 लाख करोड़ का कारोबार हो सके और कम से कम पांच बिलियन डॉलर के Defence equipments हम Export करने की क्षमता अपने भीतर पैदा कर सके।
यह काम असम्भव नही है। अभी तक इस असंभव से लगने वाले काम को संभव बनाने की इच्छाशक्ति का जो अभाव था, वह अब दूर हो गया है।
भारत को एक सशक्त और स्वाभिमानी देश बनाने के लिए उसका आत्मनिर्भर होना जरूरी है। यह स्पष्टता अब सभी को है।
कर्इ बार लोग एक गलत तस्वीर पेश करते हैं कि ‘आत्मनिर्भरभारत’का संकल्प ‘Isolation’
को बढ़ावा देगा। मैं मानता हूं कि ‘आत्मनिर्भरभारत’पूरी दुनिया के लिए उम्मीद और राहत देने वाला संकल्प है।
आज पूरे विश्व में यह बात चल पड़ी है कि दुनिया का ‘Manufacturing Hub’ एक देश ही नही होना चाहिए।
अब जब Global Economy अपनी Manufacturing को Decentralise करने के लिए, नए Options की तलाश कर रही है, तो भारत उस तलाश को न केवल पूरा करता है, बल्कि यह उम्मीद भी जगाता है, कि यह ‘Manufacturing Shift’ पूरी ‘Global Economy को नर्इ Lift’ भी देने की क्षमता रखता है।
आज भारत ‘Global Optimism’ का केन्द्र है, क्योंकि इस देश में Opportunities यानि अवसर का भंडार है। Options यानि विकल्प की भरमार है, और Openness यानि खुलेपन का आगार है।
भारत में जन, मन और सारा तंत्र खुलेपन का प्रतीक है। आत्मनिर्भर भारत खुले मन से नए दरवाजे खोलने का नाम है। हमारे दरवाजे बंद नही हो रहे बल्कि और खुल रहे हैं बस शर्त इतनी है कि ‘Manufacturing हमारेघरपरहीकरिये।’
भारत के बड़े बाजार की चर्चा हर तरफ होती है। यहां जो मौका है वह कहीं और नही है। हमारे लिए बनाना है तो इसी देश में बनाइए। सीधे शब्दों में कहा जाये कि ‘भारतमेंजोबिकेगावहयहीबनेगा’।इतना ही हमारा आग्रह है।
रक्षा के क्षेत्र में तो आत्मनिर्भरता बेहद जरूरी है। जो देश अपने रक्षा उपकरणों के लिए Imports पर निर्भर रहेगा वह सशक्त और स्वाभिमानी कभी नही हो सकेगा। इसलिए Defence Sector में
आत्मनिर्भर
होना हमारे देश के ‘स्वाभिमान’
और ‘सम्प्रभुता’
से जुड़ा हुआ है।
आत्मनिर्भर भारत का छठा लक्ष्य है, हर हाथ को काम देने वाली अर्थव्यवस्था का निर्माण करना। दीनदयालजी का मानना था, काम की भांति न्यूनतम वेतन, न्यायोचित प्राप्ति और उसका न्यायोचित वितरण भी सामाजिक हित के लिए आवश्यक होते है।
इस देश में श्रमिकों के लिए कानूनों के इतने बड़े-बड़े जाल और जंजाल थे कि मजदूर को उसके अधिकारों की प्राप्ति लगभग असंभव हो गर्इ थी। अब हमारी सरकार ने संसद में नए विधेयकों को पारित करा कर देश में नए Labour Reforms की नीवं रख दी है।
इन नए श्रमिक कानूनों के माध्यम से, भारत के करीब 50 करोड़ संगठित और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को वेतन समय पर देना और उनकी सेवाओं को सुरक्षित रखना अनिवार्य कर दिया गया है।
अब श्रमिकों को कोर्ट कचहरी के चक्कर से मुक्त कराने के लिए, सरल और सहज 4
Labour
Codes बनाए
गए हैं। जिसमें अब श्रमिकों के स्वास्थ्य, सुविधा और उनकी सुविधा का भी पूरा ध्यान रखा गया है।
मैं मानता हूं कि दीनदयालजी ने देश के श्रमिकों के कल्याण के लिए जो सोचा था उसे आज प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पूरा किया जा रहा है।
आत्मनिर्भर भारत का सपना तभी पूरा होगा, जब समाज के हर तबके, गरीब से गरीब तबके के लोगों में एक आत्मविश्वास का भाव पैदा होगा। यह आत्मविश्वास जगाने का काम हमारी सरकार और हमारे प्रधानमंत्री जी कर रहे है।
अन्त में मैं आप सभी से यही कहना चाहूंगा कि भविष्य के भारत की नींव आत्मनिर्भर भारत की मजबूती पर निर्भर है। जंग के मैदान से लेकर खेत खलिहान तक भारत अपनी जरूरतों को पूरा करने की कूबत हासिल कर लें, यही ‘आत्मनिर्भरभारत’का हमारा संकल्प है और यही इस देश के सामने एकमात्र विकल्प भी है।
आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद एवं मुझे ‘आत्मनिर्भर भारत के संकल्प’ विषय पर अपनी बात विस्तार से रखने के लिए अवसर देने के लिए मैं डा. महेश शर्मा और एकात्म मानवदर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान के प्रति आभार व्यक्त करता हूं।